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कौन है भगवान शिव शंकर |Science-Prove| जाने इनके रूप स्वभाव

शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, कल्याणकारी या शुभकारी। यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है। 'शि' का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला |हमने परंपरा और संस्कृति में शिव के लिए कई अद्भुत रूपों का निर्माण किया। गूढ़, गैर-विचारशील ईश्वर; शुभ शम्भो; निहत्थे भोले भोले; दक्षिणामूर्ति, वेदों के महान गुरु और शिक्षक, शास्त्र और तंत्र; आसानी से क्षमा करने वाला आशुतोष; भैरव, वह जो विधाता के बहुत खून से रंगा था; अचलेश्वर, परम शांति; नर्तक के सबसे गतिशील, नटराज - जीवन के जितने भी पहलू हैं, कि उसे कई पहलुओं की पेशकश की गई है।


योग का जन्म
आज जिस भी चीज़ को हम योग के नाम से जानते हैं, उसकी शुरुआत कई सालों पहले भगवान शिव द्वारा की गयी थी। वैज्ञानिक तथ्य भी यह बताते हैं कि करीब पचास हज़ार साल पहले मानव चेतना में एक जबरदस्त उछाल आया था।


आधुनिक मानवशास्त्र और विज्ञान के मुताबिक आज से करीब पचास हजार साल और सत्तर हजार साल पहले के बीच कहीं कुछ घटित हुआ। इन बीस हजार सालों के दौरान कुछ ऐसा हुआ, जिसने अचानक मानव जाति में बुद्धि को एक अलग स्तर तक पहुंचा दिया। इंसानों में बुद्धि और चेतना का अचानक विस्फोट सा हुआ, जो सामान्य विकास के क्रम में नहीं है। उस समय कुछ ऐसी प्रेरक घटनाएं हुईं जिसने उस समय के मानव की बुद्धि और चेतनता के विकास को एकदम से तीव्र कर दिया। योगिक परंपरा के मुताबिक यही वो समय था जब हिमालय क्षेत्र में योगिक प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी।


आदियोगी ने अपने सात शिष्यों यानी सप्तऋषियों के साथ दक्षिण का रुख किया। उन्होंने जीवन-तंत्र की खोज करनी शुरू कर दी, जिसे आज हम योग कहते हैं। मानवता के इतिहास में पहली बार किसी ने इस संभावना को खोला कि अगर आप इसके लिए कोशिश करने को इच्छुक हैं, तो आप अपनी पूरी चेतना में अपनी वर्तमान अवस्था से दूसरी अवस्था में विकसित हो सकते हैं। आदियोगी ने बताया कि आपका जो वर्तमान ढांचा है, यही आपकी सीमा नहीं है। आप इस ढांचे को पार कर सकते हैं और जीवन के एक पूरी तरह से अलग पहलू की ओर बढ़ सकते हैं।

एक ऋषि दक्षिण अमेरिका तो एक दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में चले गए। एक शिष्य ने कभी अपना मुंह नहीं खोला और न ही कोई उपदेश दिया, लेकिन उनकी मौजूदगी ने बड़े-बड़े काम किए। उस ज्ञान के प्रसार के लिए इन सात लोगों को भेजा गया। योगिक कथाओं में कई तरह से इसका वर्णन है


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तीसरी आंख : शिव को हमेशा त्रयंबक कहा गया है, क्योंकि उनकी एक तीसरी आंख है। इसका मतल‍ब सिर्फ यह है कि बोध या अनुभव का एक दूसरा आयाम खुल गया है। दो आंखें सिर्फ भौतिक चीजों को देख सकती हैं।अगर तीसरी आंख खुल जाती है, तो इसका मतलब है |कि भीतर की ओर देख सकता है। इस बोध से आप जीवन को बिल्कुल अलग ढंग से देख सकते हैं| आप चीजों को इस तरह देखते हैं, जो आपके जीवित रहने के लिए जरूरी हैं


चंद्रमा : शिव के कई नाम हैं। उनमें एक काफी प्रचलित नाम है सोम या सोमसुंदर। वैसे तो सोम का मतलब चंद्रमा होता है मगर सोम का असली अर्थ नशा होता है। नशा सिर्फ बाहरी पदार्थों से ही नहीं होता, बल्कि केवल अपने भीतर चल रही जीवन की प्रक्रिया में भी आप मदमस्त रह सकते हैं।

नंदी : नंदी अनंत प्रतीक्षा का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति में इंतजार को सबसे बड़ा गुण माना गया है। जो बस चुपचाप बैठकर इंतजार करना जानता है, वह कुदरती तौर पर ध्यानमग्न हो सकता है।ध्यान का मतलब है कि आप भगवान की बात सुनना चाहते हैं। आप बस अस्तित्व को, सृष्टि की परम प्रकृति को सुनना चाहते हैं। आपके पास कहने के लिए कुछ नहीं है, आप बस सुनते हैं। नंदी का गुण यही है

त्रिशूल : शिव का त्रिशूल जीवन के तीन मूल पहलुओं को दर्शाता है। योग परंपरा में उसे रुद्र, हर और सदाशिव कहा जाता है।जिन्हें कई रूपों में दर्शाया गया है। उन्हें इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना भी कहा जा सकता है। ये तीनों प्राणमय कोष यानि मानव तंत्र के ऊर्जा शरीर में मौजूद तीन मूलभूत नाड़ियां हैं – बाईं, दाहिनी और मध्य। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है। तीन मूलभूत नाड़ियों से 72,000 नाड़ियां निकलती हैं। इन नाड़ियों का कोई भौतिक रूप नहीं होता। यह आपके दो पहलू – तर्क-बुद्धि और सहज-ज्ञान हो सकते हैं।

सर्प  : योग संस्कृति में, सर्प यानी सांप कुंडलिनी का प्रतीक है। यह आपके भीतर की वह उर्जा है जो फिलहाल इस्तेमाल नहीं हो रही है। कुंडलिनी का स्वभाव ऐसा होता है कि जब वह स्थिर होती है, तो आपको पता भी नहीं चलता कि उसका कोई अस्तित्व है। केवल जब उसमें हलचल होती है, तभी आपको महसूस होता है कि आपके अंदर इतनी शक्ति है। जब तक वह अपनी जगह से हिलती-डुलती नहीं, उसका अस्तित्व लगभग नहीं के बराबर होता है।

ॐ नम: शिवाय : “ॐ नम: शिवाय” वह मूल मंत्र है, जिसे कई सभ्यताओं में महामंत्र माना गया है। इस मंत्र का अभ्यास विभिन्न आयामों में किया जा सकता है। इन्हें पंचाक्षर कहा गया है, इसमें पांच मंत्र हैं। ये पंचाक्षर प्रकृति में मौजूद पांच तत्वों के प्रतीक हैं और शरीर के पांच मुख्य केंद्रों के भी प्रतीक हैं। इन पंचाक्षरों से इन पांच केंद्रों को जाग्रत किया जा सकता है। ये पूरे तंत्र (सिस्टम) के शुद्धीकरण के लिए बहुत शक्तिशाली माध्यम हैं।

लेकिन अगर आपके अंदर एक खास तरह की तैयारी नहीं है तो बेहतर होगा कि आप खुद मंत्रोच्‍चारण न करें। आप इस मंत्रोच्‍चारण को खूब ध्‍यान से सुनें, यही लाभदायक होगा।


भगवान शिव : जो शून्य से परे हैं
योगिक विज्ञान में  भगवान शिव को रूद्र कहा जाता है। रूद्र का अर्थ है वह जो रौद्र या भयंकर रूप में हो। शिव को सृष्टि -कर्ता भी कहा जाता है। आइये जानते हैं कि कैसे शिव के इन्हीं दोनों पक्षों के मेल को ही विज्ञान बिग-बैंग का नाम दे रहा है।
आपको पता है आजकल वैज्ञानिक कह रहे हैं कि हर चीज डार्क मैटर से आती है साथ ही उन्होंने डार्क एनर्जी के बारे में भी बात करना शुरू कर दिया है। योग में हमारे पास दोनों मौजूद हैं - डार्क मैटर भी और डार्क एनर्जी भी। यहां शिव को काला माना गया है यानी डार्क मैटर और शक्ति का प्रथम रूप या डार्क एनर्जी को काली कहा जाता है। योग कैसे सृष्टि को भीतर से समझाता है। यह एक तार्किक संस्कृति है।

इसकी शब्दावली की अपनी एक खास पहचान है, क्योंकि यह एक ऐसे पहलू के बारे में बात कर रही है जो हमारी तार्किक समझ के दायरे में नहीं है। लेकिन इसे तार्किक ढंग से बताना ज्यादा अच्छा है।

शिव सो रहे हैं। जब हम यहां शिव कहते हैं तो हम किसी व्यक्ति या उस योगी के बारे में बात नहीं कर रहे हैं, यहां शि-व का मतलब है “वह जो है ही नहीं”। जो है ही नहीं, वह सिर्फ सो सकता है। इसलिए शिव को हमेशा ही डार्क बताया गया है।
शिव सो रहे हैं और शक्ति उन्हें देखने आती हैं। वह उन्हें जगाने आई हैं क्योंकि वह उनके साथ नृत्य करना चाहती हैं, उनके साथ खेलना चाहती हैं और उन्हें रिझाना चाहती हैं। शुरू में वह नहीं जागते, लेकिन थोड़ी देर में उठ जाते हैं। शिव  गुस्से में गरजे और तेजी से उठकर खड़े हो गए। उनके ऐसा करने के कारण ही उनका पहला रूप और पहला नाम रुद्र पड़ गया। रुद्र शब्द का अर्थ होता है – दहाडऩे वाला, गरजने वाला।


ॐ नम: शिवाय” मंत्रोच्‍चारण को खूब ध्‍यान से सुनें लाभदायक होगा continue reading.....
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4 comments:

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    (And realistically, it really has NOTHING to do with genetics or some secret-exercise and EVERYTHING around "HOW" they eat.)

    BTW, What I said is "HOW", and not "what"...

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  3. सबसे पहले तो आप सभी को महा शिवरात्रि पर्व की शुभकामनायें. आपको जानकारी देने के लिए साधुवाद.

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mahakal ki kirpa bani rehee app logo per

Jai Mahakal ki

जन्नत की चाहत तो 72 हूरों का ख्वाब है
हम तो #महाकाल के भक्त हैं
हमें #चिताओं से भी प्यार है।।

आश्चर्य की बात है.. कि लोग जीवन को बढाना चाहते है.. सुधारना नही..हर हर महादेव🙏🙏


पढ़ते क्या हो आंखों में मेरी कहानी? … Attitude 😈 में रहना तो आदत है मेरी पुरानी 😎 #महाकाल


भटक भटक के ये जग हारा,संकट में कोई दिया ना साथ
सुलझ गई हर एक समस्या,महाकाल ने जब से पकड़ा हाथ...🔱जय बाबा #महाकाल 🙏


महाकाल को देवता नहीं अपना मित्र बना लो एक सखा एक अभिभावक जो भी करो बताओ सही गलत का आत्मिक अनुभव करा देता है मेरा महाकाल वो अपना है